Monday, September 16, 2013

शब्द

 
कभी  कभी बहुत से विचार आते है मेरे मन में  ।  उनको लिखने बैठाती हूँ तो ना जाने कहाँ खो जाते है शब्द । अनगिनत से सवाल । आँखों के ख़्वाब । अपने तो कभी बेगाने । तितली , कभी आकाश में उड़ते पंछी । बहती हवाएँ । बलखाती नदियाँ । पूरब और पश्चिम । सोते जागते ।  हसंते  गाते गीत सुहाने । कभी बादल कभी घटायें । रोते हुए कभी गाते हुए । ना जाने और क्या क्या …? नहीं समझ पाती  लिखने चाहती हूँ कुछ । सब आँखों से ओझल हो जाते हैं ढलते शाम की तरह । उड़ जाते हैं कहीं आकाश में पंछी की तरह । और खो जाते है कहीं किसी याद की तरह ।  मैं चिंतन करती । धुंधले में अश्क को पहचाने लगती । कहीं से कोई खोया शब्द फिर से मी जाए । आँखों में मेरी फिर वो बस जाए । पर समझ नहीं पाती क्या रिश्ता मेरा इनसे है …? क्यूँ मुझसे आंख मिचौली खेलते है …? क्यूँ भीड़ में आ जाते है मेरे पास पर जब तन्हाई में इनको बुलाना चाहूँ तो बुलाने से भी नही आते है ये अनजाने से शब्द । 

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