कभी कभी बहुत से विचार आते है मेरे मन में । उनको लिखने बैठाती हूँ तो ना जाने कहाँ खो जाते है शब्द । अनगिनत से सवाल । आँखों के ख़्वाब । अपने तो कभी बेगाने । तितली , कभी आकाश में उड़ते पंछी । बहती हवाएँ । बलखाती नदियाँ । पूरब और पश्चिम । सोते जागते । हसंते गाते गीत सुहाने । कभी बादल कभी घटायें । रोते हुए कभी गाते हुए । ना जाने और क्या क्या …? नहीं समझ पाती लिखने चाहती हूँ कुछ । सब आँखों से ओझल हो जाते हैं ढलते शाम की तरह । उड़ जाते हैं कहीं आकाश में पंछी की तरह । और खो जाते है कहीं किसी याद की तरह । मैं चिंतन करती । धुंधले में अश्क को पहचाने लगती । कहीं से कोई खोया शब्द फिर से मी जाए । आँखों में मेरी फिर वो बस जाए । पर समझ नहीं पाती क्या रिश्ता मेरा इनसे है …? क्यूँ मुझसे आंख मिचौली खेलते है …? क्यूँ भीड़ में आ जाते है मेरे पास पर जब तन्हाई में इनको बुलाना चाहूँ तो बुलाने से भी नही आते है ये अनजाने से शब्द ।
Monday, September 16, 2013
शब्द
कभी कभी बहुत से विचार आते है मेरे मन में । उनको लिखने बैठाती हूँ तो ना जाने कहाँ खो जाते है शब्द । अनगिनत से सवाल । आँखों के ख़्वाब । अपने तो कभी बेगाने । तितली , कभी आकाश में उड़ते पंछी । बहती हवाएँ । बलखाती नदियाँ । पूरब और पश्चिम । सोते जागते । हसंते गाते गीत सुहाने । कभी बादल कभी घटायें । रोते हुए कभी गाते हुए । ना जाने और क्या क्या …? नहीं समझ पाती लिखने चाहती हूँ कुछ । सब आँखों से ओझल हो जाते हैं ढलते शाम की तरह । उड़ जाते हैं कहीं आकाश में पंछी की तरह । और खो जाते है कहीं किसी याद की तरह । मैं चिंतन करती । धुंधले में अश्क को पहचाने लगती । कहीं से कोई खोया शब्द फिर से मी जाए । आँखों में मेरी फिर वो बस जाए । पर समझ नहीं पाती क्या रिश्ता मेरा इनसे है …? क्यूँ मुझसे आंख मिचौली खेलते है …? क्यूँ भीड़ में आ जाते है मेरे पास पर जब तन्हाई में इनको बुलाना चाहूँ तो बुलाने से भी नही आते है ये अनजाने से शब्द ।
Thursday, September 12, 2013
लौट आओ!!!!!!!!!!!
लौट आओ की जी नही पाएंगे तुम बिन,
तुम ना आये तो मर जाएंगे तुम बिन।
थम लो आकर फिर से संभल जाऊ मैं ,
शीशा हूँ मैं टूट जाउंगी तुम बिन।
बह ना जाओ कहीं आँखों से आंसू बनकर ,
आँखों में मेरे नमी सी है तुम बिन।
हर जगह बस उदासी सी रहती है ,
यादें भी तन्हा सी हो गयी है तुम बिन।
कोयल गाती नही पंछी भी इधर आते नही ,
मदमस्त हवाएं भी सरसराती नही तुम बिन।
बेजान सी हो गई है घटाएं ,
बादल भी रोने लगा है तुम बिन।
लौट आओ की जी नही पाएंगे तुम बिन,
तुम ना आये तो मर जाएंगे तुम बिन।
Thursday, September 5, 2013
अच्छा लगता है जब ज़िन्दगी में किसी खास के
होने एहसास होता है।
उसके दूर होने और पास आने का एहसास होता है।
अच्छा लगता है जब किसी की याद सताने लगती
है।
पल पल दूरी का एहसास जताने लगती है।
अच्छा लगता है जब पानी ठहर सा जाता है।
किनारों से हटके कुछ बिखर सा जाता है।
अच्छा लगता है ये खुला आसमां भी
जब बादलों की आग़ोश में सिमट सा जाता है।
ये चहचहाते पंछी उड़ते गगन में
तितलियों का रंग भी कितना प्यारा लगता है।
अच्छा लगता है तब सुर्ख़ गुलाब
और तब भी जब हल्का सा लाल होता है।
अच्छा लगता है जब ज़िन्दगी में किसी खास के
होने एहसास होता है।
उसके दूर होने और पास आने का एहसास होता है।
Tuesday, September 3, 2013
क्यूँ परेशान, हैरान सा हो जाता है
क्यूँ परेशान, हैरान सा हो जाता है
क्यूँ आदमी यहाँ ,
आदमी से अनजान हो जाता है.
कोई होता है कहाँ किसी का होकर
आज साथ चलकर कल भूल जाता है.
क्यूँ आदमी यहाँ ,
आदमी से अनजान हो जाता है.
वक़्त बदल जाता है,
ये तो फितरत में है उसके
क्या खता है मौसम की
जो मौसम बदल जाता है.
क्यूँ आदमी यहाँ ,
आदमी से अनजान हो जाता है.
क्यूँ परवाह करता है मुसफ़िर
तू उसके बिछड़ जाने का
मंजिलों पर आकर अक्सर
कारवां बिछड़ जाता है.
क्यूँ परेशान, हैरान सा हो जाता है
क्यूँ आदमी यहाँ ,
आदमी से अनजान हो जाता है.
विधू
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